पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने मुख्यमंत्री को लिखा पत्र, पेसा कानून को शीघ्र लागू करने की मांग, सरना धर्म कोड पर भी की स्पष्ट चर्चा

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Jamshedpur : झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता रघुवर दास ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को एक पत्र लिखकर राज्य में पेसा (PESA) कानून को शीघ्र अधिसूचित कर पूर्ण रूप से लागू करने की मांग की है। साथ ही उन्होंने सरना धर्म कोड को लेकर भी अहम सुझाव और ऐतिहासिक संदर्भ दिए हैं।

पत्र में रघुवर दास ने कहा कि वर्ष 1996 में पारित पेसा कानून अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातीय समाज को स्वशासन का संवैधानिक अधिकार देता है। झारखंड देश के उन 10 राज्यों में शामिल है, जहां पेसा कानून लागू होना था, लेकिन अब तक यह पूर्ण रूप से लागू नहीं हो पाया है।

पूर्व मुख्यमंत्री ने विस्तार से बताया:

  • 2018 में भाजपा सरकार के कार्यकाल में पेसा नियमावली का प्रारूप तैयार किया गया था और 14 विभागों से राय मांगी गई थी।

  • 2023 में, मौजूदा सरकार ने नियमावली का प्रारूप प्रकाशित कर आपत्तियां एवं सुझाव आमंत्रित किए थे।

  • मार्च 2024 में, राज्य के विधि विभाग एवं महाधिवक्ता ने इसे संवैधानिक और न्यायिक रूप से उपयुक्त बताया।

  • हाई कोर्ट के निर्देशों के बावजूद अभी तक अधिसूचना जारी नहीं की गई, जिससे जून 2024 में अवमानना याचिका भी दाखिल की गई।

सरना धर्म कोड पर विचार और कानूनी पक्ष

रघुवर दास ने पत्र में स्पष्ट किया कि पेसा कानून के लागू होने से सरना समाज की उपासना पद्धति, रीति-रिवाज, परंपराएं और पहचान को कानूनी मान्यता मिल सकती है। उन्होंने कहा कि ग्राम सभा दस्तावेज बनाकर सरकार को प्रस्ताव भेज सकती है, जिसे कानूनी दस्तावेज के रूप में मान्यता दी जा सकती है।

उन्होंने विभिन्न जनजातीय समूहों की सांस्कृतिक विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा:

  • मुंडा समाज: पत्थरगड़ी और खुदकटी

  • उरांव समाज: दीपावली के दूसरे दिन कुंडी पूजा

  • संथाल समाज: कार्तिक पूर्णिमा पर साफाहोड़

  • हो समाज: मागे परब (सृष्टि रचना पर्व)

इन्हीं परंपराओं को कानूनी संरक्षण देने के लिए पेसा कानून सबसे सशक्त माध्यम है।

सरना धर्म कोड की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

रघुवर दास ने 2013 में लोहरदगा सांसद सुदर्शन भगत द्वारा लोकसभा में उठाए गए सवाल और 2014 में केंद्र सरकार के जवाब का हवाला देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि सरना कोड को अलग धर्म कोड के रूप में मान्यता देने में व्यवहारिक कठिनाई है, क्योंकि देश में 100 से अधिक जनजातीय समूह हैं, जिनकी उपासना पद्धतियां भिन्न हैं।

झारखंड सरकार के पास है पूर्ण अधिकार

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि यदि राज्य सरकार पेसा अधिनियम को पूरी तरह लागू करती है, तो ग्राम सभा के माध्यम से सरना कोड का दस्तावेजीकरण और सरकारी मान्यता संभव हो सकेगा। इससे सरना समाज की पहचान, संस्कृति और अधिकार सुरक्षित होंगे, और हकमारी पर भी अंकुश लगेगा।

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