युद्ध लड़ा नहीं, थोपा जाता है : निशिकांत ठाकुर

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जमशेदपुरवरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार निशिकांत ठाकुर का कहना है कि युद्ध कभी लड़ा नहीं जाता, बल्कि हमेशा थोपा जाता है। उन्होंने कहा कि इतिहास गवाह है कि विश्व के शक्तिशाली देशों ने कमजोर देशों पर युद्ध थोपा और अपनी ताकत का प्रदर्शन किया। रूस-यूक्रेन युद्ध इसका ताज़ा उदाहरण है, जहां अमेरिका परोक्ष रूप से अपनी भूमिका निभा रहा है।

निशिकांत ठाकुर ने वियतनाम-अमेरिका और जापान के हिरोशिमा-नागासाकी जैसी ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि ताकतवर देश अपनी सैन्य शक्ति के बल पर हमेशा कमजोर देशों को झुकाने का प्रयास करते हैं। आज भी वही स्थिति है, फर्क सिर्फ इतना है कि अब युद्ध तकनीकी और आर्थिक मोर्चों पर लड़े जा रहे हैं।

उन्होंने भारत पर पड़ रहे प्रभाव का जिक्र करते हुए कहा कि अमेरिका की नीतियां भारत को आर्थिक रूप से अस्थिर करने पर आमादा हैं। निर्यात शुल्क में भारी वृद्धि से भारतीय उद्योग प्रभावित हो रहे हैं, जिससे लाखों लोगों की नौकरी पर खतरा मंडरा रहा है। साथ ही रूस से सस्ते कच्चे तेल का आयात रोकने के लिए अमेरिका दबाव बना रहा है, जबकि भारत और रूस की मित्रता 1969 से चली आ रही ऐतिहासिक समझौते पर आधारित है।

ठाकुर ने 1971 के भारत-पाक युद्ध में रूस के समर्थन की याद दिलाते हुए कहा कि अमेरिका अब भारत को उसी रूस से दूरी बनाने के लिए मजबूर कर रहा है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या भारत अपने दशकों पुराने संबंधों को अमेरिकी दबाव में खत्म कर लेगा?

नाटो (NATO) की भूमिका पर भी उन्होंने प्रकाश डाला और कहा कि यह संगठन लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के नाम पर कार्य करता है, लेकिन जब रूस-यूक्रेन समझौते की बात आई तो राष्ट्रपति पुतिन ने सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि जो भी देश यूक्रेन का पक्षधर होगा, वह रूस से युद्ध के लिए तैयार रहे।

इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पूर्व सलाहकार पीटर नवारो ने रूस-यूक्रेन युद्ध को “मोदी का युद्ध” तक करार दे दिया और कहा कि भारत रूस को सस्ते तेल खरीदकर अप्रत्यक्ष मदद कर रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार ठाकुर ने लिखा है कि आज यूक्रेन बुरी तरह तबाह हो चुका है, लेकिन दोनों देशों के राष्ट्रपति किसी समझौते के पक्ष में नहीं हैं। भारत के लिए यह बड़ी चुनौती है कि वह वैश्विक दबाव और राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन कैसे बनाए।

निशिकांत ठाकुर का निष्कर्ष साफ है – युद्ध लड़ा नहीं जाता, थोपा जाता है। और आज भी अमेरिका भारत पर दबाव डालकर उसे मजबूर करना चाहता है।

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