लद्दाख में पर्यावरणविद् और गांधीवादी विचारधारा के प्रबल समर्थक सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी ने पूरे देश में बहस छेड़ दी है। रमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित इस विश्वस्तरीय पर्यावरणविद् पर अब देशद्रोह और पाकिस्तानी संपर्क जैसे गंभीर आरोप लगाए गए हैं।
डीजीपी एसडी जम्बाल ने खुलासा किया कि वांगचुक पाकिस्तान के एक जासूस के संपर्क में थे, जिसने उनके आंदोलन से जुड़े वीडियो सीमा पार भेजे। लेकिन यह खुलासा जितना चौंकाने वाला है, उतना ही सवाल खड़ा करता है — क्या वाकई एक गांधीवादी अचानक “विद्रोही” बन सकता है?
पिछले बुधवार को लेह में हुई हिंसा और पुलिस फायरिंग में चार मौतों व 90 से अधिक लोगों के घायल होने के बाद वांगचुक को गिरफ्तार किया गया। उन्हें जोधपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया है। पुलिस का दावा है कि आंदोलन और आगजनी की घटनाओं के पीछे वही सूत्रधार थे।
वहीं, सोनम वांगचुक की पत्नी गीतांजलि अंगमों ने इन सभी आरोपों को सिरे से खारिज करते हुए कहा — “मेरे पति गांधीवादी तरीके से आंदोलन कर रहे थे। उनका पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं। हालात सीआरपीएफ की कार्यवाही के कारण बिगड़े।”
वांगचुक का आंदोलन दरअसल लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने, पूर्ण राज्य का दर्जा देने और अलग लोकसेवा आयोग व दो लोकसभा सीटों की मांग को लेकर था। यह आंदोलन गांधी जयंती यानी 2 अक्टूबर को समाप्त होने वाला था, लेकिन उससे पहले ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया।
राजनीतिक गलियारों में इस गिरफ्तारी की गूंज तेज़ है। राहुल गांधी ने इस कदम को “सरकार की भयंकर भूल” बताया और लद्दाख की जनता की मांग का समर्थन किया। वहीं विपक्षी दलों ने इसे “लोकतंत्र पर हमला” करार दिया है।
इतिहास गवाह है कि सत्ता के खिलाफ खड़े होने वाले कई महानायक – गांधी, नेल्सन मंडेला, जयप्रकाश नारायण – जेल की सलाखों के पीछे से ही आंदोलन के प्रतीक बने।
सवाल सिर्फ इतना है कि क्या सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी वास्तविक जांच का परिणाम है या फिर एक राजनीतिक औजार बन गई है?
अब निगाहें न्यायपालिका और निष्पक्ष जांच एजेंसियों पर टिकी हैं। क्योंकि यदि वांगचुक निर्दोष हैं, तो उनकी छवि को जो धक्का लगा है, उसे वापस पाना आसान नहीं होगा।
