Jamshedpur : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) कल अपना शताब्दी वर्ष पूरे देशभर में धूमधाम से मनाने जा रहा है। विजयदशमी 1925 को डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन आज 100 वर्ष पूरे कर चुका है। इस अवसर पर देशभर में शाखाएं, पथ-संचलन, सेवा कार्य और संगोष्ठियां आयोजित होंगी।
संघ का 100 वर्षों का सफर
17 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुआ संगठन आज दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन बन चुका है। शिक्षा, स्वास्थ्य, आपदा प्रबंधन, सामाजिक समरसता, पर्यावरण और ग्राम विकास जैसे क्षेत्रों में संघ ने महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। विभाजन के समय शरणार्थियों की मदद, 1962 व 1971 के युद्धकाल में सैनिकों का सहयोग, 1975 के आपातकाल में लोकतंत्र की रक्षा और कोविड महामारी में सेवा कार्य संघ की उल्लेखनीय उपलब्धियां मानी जाती हैं।
अनुषांगिक संगठनों की भूमिका और देश में उपयोगिता
संघ केवल शाखाओं तक सीमित नहीं, बल्कि उसके विचार और कार्यक्षेत्र ने सैकड़ों संगठनों को जन्म दिया है जिन्हें “संघ परिवार” कहा जाता है। इनकी सक्रिय भूमिका देश के विभिन्न क्षेत्रों में दिखती है—
भारतीय जनता पार्टी (BJP): राजनीति के माध्यम से राष्ट्रहित और जनसेवा की धारा को आगे बढ़ाने का कार्य।
भारतीय मजदूर संघ (BMS): मजदूरों और श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा व कल्याण के लिए कार्यरत।
भारतीय किसान संघ (BKS): किसानों की समस्याओं को उठाना और कृषि आधारित समाधान प्रस्तुत करना।
विश्व हिन्दू परिषद (VHP): धार्मिक-सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण और गौसेवा व धर्मरक्षा का कार्य।
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP): छात्रों के हितों और शिक्षा सुधार के लिए सक्रिय भूमिका।
सेवा भारती: शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में निःस्वार्थ सेवा।
विद्या भारती: पूरे देश में हजारों विद्यालयों का संचालन, जहां भारतीय संस्कृति आधारित शिक्षा दी जाती है।
वनवासी कल्याण आश्रम: आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा।
राष्ट्र सेविका समिति: महिलाओं को सशक्त बनाने और सामाजिक नेतृत्व में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने का मंच।
ये संगठन समाज के विभिन्न वर्गों और क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं और मिलकर राष्ट्रनिर्माण की व्यापक प्रक्रिया को गति दे रहे हैं।
संघ का उद्देश्य और मकसद
संघ का ध्येय राष्ट्र का पुनर्निर्माण और समाज का संगठन है। संघ मानता है कि जब समाज संगठित होगा, तभी भारत विश्वगुरु की भूमिका निभा पाएगा। संघ का लक्ष्य राजनीति नहीं, बल्कि समाज सेवा और राष्ट्र-चेतना का जागरण है।
शताब्दी वर्ष का महत्व
संघ अपने 100 वर्षों की यात्रा को केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्ममंथन और भविष्य की नई दिशा तय करने का अवसर मान रहा है। आने वाले समय में सेवा कार्य, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और राष्ट्र की सुरक्षा को और मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा।
