जमशेदपुर : भारत की औद्योगिक क्रांति के शुरुआती शिल्पकारों में से एक, बुर्जोर्जी जमास्पजी पादशाह का जन्म 7 मई 1864 को बॉम्बे (अब मुंबई) में हुआ था। वे जमशेतजी नसरवानजी टाटा के सबसे विश्वसनीय और करीबी सहयोगियों में गिने जाते हैं। नवसारी के एक व्यापारिक परिवार से संबंध रखने वाले पादशाह बचपन से ही जमशेतजी टाटा के संरक्षण में पले-बढ़े। यही संबंध आगे चलकर एक साझा औद्योगिक स्वप्न में बदल गया, जिसने भारत की आधुनिक अर्थव्यवस्था की नींव रखी।

अपनी शिक्षा के दौरान पादशाह ने भौतिकी, अंग्रेज़ी, इतिहास और अर्थशास्त्र जैसे विषयों में उत्कृष्टता हासिल की। बॉम्बे विश्वविद्यालय से बी.ए. करने के बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से गणित का अध्ययन किया। छात्र जीवन में ही वे सिंध आर्ट्स कॉलेज के उप-प्राचार्य बने और बॉम्बे विश्वविद्यालय के पहले भारतीय अंग्रेज़ी परीक्षक बनने का गौरव प्राप्त किया।

1894 में पादशाह ने टाटा समूह से औपचारिक रूप से जुड़ाव किया और इंडियन होटल्स कंपनी की स्थापना में सक्रिय भूमिका निभाई। यह वही परियोजना थी, जिससे बाद में भारत का प्रतिष्ठित ताज महल होटल अस्तित्व में आया। भारत में आर्थिक आत्मनिर्भरता के पक्षधर पादशाह ने भारतीय स्वामित्व वाले बैंक की परिकल्पना की और उसे साकार किया। इसके परिणामस्वरूप 1905 में बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना हुई, जिसने उस दौर में वित्तीय स्वतंत्रता की नई राह खोली।

विज्ञान और शिक्षा के क्षेत्र में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने बंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई—एक ऐसा सपना जिसे जमशेतजी टाटा ने देखा था और जिसे पादशाह ने 1911 में साकार किया। इसके अतिरिक्त, वे टाटा हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट से भी जुड़े, जो 1910 में प्रारंभ हुआ।

हालांकि उनका सबसे स्थायी योगदान भारतीय इस्पात उद्योग की नींव डालने में है। पादशाह की दूरदृष्टि और निष्ठा ने इस क्षेत्र में क्रांतिकारी परिवर्तन लाए, जिसने भारत को औद्योगिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने की राह पर अग्रसर किया। 20 जून 1941 को उनका निधन हुआ, लेकिन भारत की औद्योगिक धारा में उनका योगदान आज भी प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।