एमबीएनएस इंस्टीट्यूट में “21वीं सदी में शिक्षा, चुनौतियाँ और अवसर” पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

जमशेदपुर। आसनबनी स्थित एमबीएनएस इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन में “21वीं सदी में शिक्षा: चुनौतियाँ और अवसर” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन बुधवार को किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री विवेक सिंह ने की। संगोष्ठी में देशभर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों से आए शिक्षाविदों और विशेषज्ञों ने भाग लेकर अपने विचार साझा किए।

मुख्य वक्ता के रूप में ओपन यूनिवर्सिटी छत्तीसगढ़ के कुलपति डॉ. बंश गोपाल सिंह और सुन्दरलाल शर्मा विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि ने कहा कि आधुनिक शिक्षा व्यवस्था में नवाचार और तकनीक का समुचित समावेश अत्यंत आवश्यक है, जिससे छात्रों को प्रभावशाली ढंग से शिक्षित किया जा सके।

पटना के पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के प्रो-वाइस चांसलर डॉ. राजीव कुमार मल्लिक ने शिक्षा को जीवन-कौशल के साथ जोड़ने तथा विद्यार्थियों को आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उत्तराखंड उच्च शिक्षा विभाग के डॉ. दिनेश कुमार गुप्ता ने ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल संसाधनों के प्रभावी उपयोग पर अपने विचार रखे।

ओडिशा के श्री जगन्नाथ संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ. लक्ष्मीधर पांडा ने शैक्षणिक ढांचे में सांस्कृतिक मूल्यों के समावेश को आवश्यक बताया। वहीं कोल्हान विश्वविद्यालय, चाईबासा के डॉ. संजीव आनंद ने छात्रों के लिए कौशल विकास के अधिक अवसर उपलब्ध कराने की बात कही।

जीसी जैन कॉलेज, चाईबासा के प्राचार्य डॉ. संजीव कुमार सिंह ने शिक्षा को व्यावसायिक आवश्यकताओं से जोड़ने की वकालत की, जबकि कोल्हान विश्वविद्यालय के एनएसएस समन्वयक डॉ. दारा सिंह गुप्ता ने शिक्षा के साथ सामाजिक सेवा की भावना को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

संगोष्ठी में लगभग 200 छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों एवं शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन संस्था की निदेशिका श्रीमती अनुपा सिंह ने किया, जबकि मंच संचालन सीखा शर्मा और इशिका बनर्जी ने संभाला।

सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। समापन सत्र में श्रीमती अनुपा सिंह ने अतिथियों, प्रतिभागियों एवं आयोजकों का आभार व्यक्त करते हुए भविष्य में भी इस प्रकार के ज्ञानवर्धक कार्यक्रम आयोजित करने की प्रतिबद्धता दोहराई। कार्यक्रम की सफलता में डॉ. दीपिका भारती, श्री भवतारण भकत, सुश्री मिलि कुमारी, श्री मधुसूदन महतो एवं श्री राजेश्वर वर्मा का विशेष योगदान सराहनीय रहा।

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