Jamshedpur : टाटा स्टील फाउंडेशन द्वारा संचालित ‘आकांक्षा’ पहल ने झारखंड के विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के बच्चों और युवाओं के जीवन में शिक्षा की रोशनी भर दी है। वर्ष 2012 में महज 10 छात्रों के साथ शुरू हुई यह पहल आज 500 से अधिक छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की दिशा में आगे बढ़ा चुकी है।
इस पहल की सबसे प्रेरणादायक कहानियों में शामिल हैं रश्मि बिरहोर, बालिका बिरहोर, सरला बिरहोर, शकुंतला बिरहोर, बिजय सबर, महावीर सबर और सुशील सबर जैसे छात्र-छात्राएं, जिन्होंने कठिन परिस्थितियों को मात देकर शिक्षा को अपना हथियार बनाया।
🧕 रश्मि बिरहोर:
झारखंड के रामगढ़ की रहने वाली रश्मि बिरहोर, जो बिरहोर जनजाति से ताल्लुक रखती हैं, इंटरमीडिएट और स्नातक पास करने वाली अपने समुदाय की पहली छात्रा बनीं। रश्मि आज इतिहास में स्नातक की पढ़ाई पूरी कर चुकी हैं और सरकारी सेवा में आने का सपना देख रही हैं। वह कहती हैं कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से प्रेरणा लेकर उन्होंने कभी हार नहीं मानी।
🌟 बालिका बिरहोर:
पूर्वी सिंहभूम के छोटा बांकी गांव की बालिका बिरहोर ने मैट्रिक में 82% अंक प्राप्त कर शिक्षा में समुदाय की पहली पीढ़ी के प्रतीक के रूप में पहचान बनाई। वर्तमान में वह बेंगलुरु के नारायणा हृदयालय में नर्सिंग की पढ़ाई कर रही हैं।
📘 सरला बिरहोर:
सरायकेला-खरसावां जिले के घाट दुलमी गांव की सरला बिरहोर ने 70% अंकों के साथ होली क्रॉस चौका से मैट्रिक उत्तीर्ण की। वह ‘आकांक्षा’ से तब जुड़ीं जब वह किंडरगार्टन में थीं और आज अपने भाई-बहनों को प्रेरित कर रही हैं।
👦 बिजय सबर (फूलझोरे, पुरुलिया):
सिदू कान्हू शिक्षा निकेतन से मैट्रिक पास कर शिक्षक बनने का सपना देख रहे हैं। उनकी बहन सिविल सेवा की तैयारी कर रही हैं – एक परिवार में दो शिक्षित युवाओं की कहानी, जो बदलाव का प्रतीक है।
⚽ महावीर सबर (धूसरा, पूर्वी सिंहभूम):
फुटबॉल के शौकीन महावीर पढ़ाई के साथ-साथ खेल को भी संतुलित कर रहे हैं। उनके भाई गरीबी के कारण स्कूल छोड़ चुके थे, लेकिन महावीर ने हार नहीं मानी।
👩⚕️ शकुंतला बिरहोर:
चक्रधरपुर के कार्मेल स्कूल और चेन्नई के अपोलो स्कूल ऑफ नर्सिंग तक का उनका सफर, भाषा संबंधी कठिनाइयों और सामाजिक बाधाओं को पार कर शिक्षा में सफलता की मिसाल बन गया।
🎯 सुशील सबर:
लुपुंगडीह गांव के सुशील सबर इतिहास विषय से उच्च शिक्षा प्राप्त कर भारतीय सेना में भर्ती होने का सपना देख रहे हैं। वे दिहाड़ी मजदूर परिवार से आते हैं, लेकिन उनके संकल्प अडिग हैं।
🎯 ‘आकांक्षा’ का प्रभाव
फाउंडेशन न केवल शिक्षा की व्यवस्था करता है, बल्कि पौष्टिक आहार, सुरक्षित छात्रावास, और परिवहन जैसी मूलभूत आवश्यकताओं का भी ध्यान रखता है। इससे छात्रों का समग्र विकास सुनिश्चित होता है। आज ‘आकांक्षा’ की पहुंच 17 स्कूलों, 500+ छात्रों और दर्जनों सफल कहानियों तक हो चुकी है।
दलमा क्षेत्र में सक्रिय इस पहल ने सबर, बिरहोर और पहाड़िया जैसे समुदायों में झिझक को तोड़ा है, भरोसा जगाया है और विकास का मार्ग प्रशस्त किया है।
