जर्जर भवन में सिविल सर्जन कार्यालय, जान हथेली पर रख कर काम कर रहे कर्मचारी

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Seraikela : सरायकेला जिले की समस्याएं थमने का नाम नहीं ले रहीं। एक समस्या सुलझती नहीं कि दूसरी संकट बनकर सामने खड़ी हो जाती है। इस बार संकट जिले की स्वास्थ्य सेवाओं की रीढ़—सिविल सर्जन कार्यालय पर मंडरा रहा है। जिस भवन से पूरे जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था संचालित होती है, वहीं अब खुद जर्जर हालात में पहुंच चुका है। लगातार बारिश और लचर निर्माण कार्यों के चलते भवन की स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि सिविल सर्जन समेत तमाम कार्यालयकर्मी अपनी जान जोखिम में डालकर काम करने को मजबूर हैं।

सूत्रों के अनुसार, भवन की छतें कई जगह से टपक रही हैं, दीवारें दरक चुकी हैं, और मानसून के दौरान छतों का गिरना अब सामान्य होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में मरीजों और कर्मियों दोनों के लिए यह भवन मौत का फंदा बन चुका है।

मरम्मत के नाम पर खानापूर्ति

जानकारी के मुताबिक, दो साल पहले ही भवन की मरम्मत के लिए आवश्यक फंड जारी कर दिया गया था, लेकिन भवन निर्माण विभाग ने सिर्फ छत पर पेटी स्टोन ढलाई कर कार्य पूरा दिखा दिया। शेष कार्य अधर में लटकता रहा, जो आज तक अधूरा है।

जब इस गंभीर विषय पर भवन निर्माण विभाग के कार्यपालक अभियंता सत्येश देवगाम से संपर्क किया गया, तो उन्होंने मीडिया से संवाद करने से साफ इनकार कर दिया। किसी तरह विभाग के सहायक अभियंता से संपर्क हो सका, जिन्होंने यह स्वीकार किया कि फंड मिल चुका है, लेकिन कार्य अभी प्रक्रिया में है।

प्रशासनिक उदासीनता या सिस्टम फेल?

सबसे अहम सवाल यह है कि जब जिले के शीर्ष चिकित्सा अधिकारी (सिविल सर्जन) का कार्यालय ही असुरक्षित है, तो आम जनता के स्वास्थ्य और सुरक्षा की कल्पना करना कठिन नहीं है।

सरायकेला की यह स्थिति न केवल भवन निर्माण विभाग की विफलता को दर्शाती है, बल्कि अबुआ सरकार की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े करती है। क्या प्रशासन किसी बड़ी दुर्घटना के इंतजार में है?

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कार्यालयकर्मियों और सामाजिक संगठनों की मांग है कि राज्य सरकार और जिला प्रशासन इस पर तत्काल संज्ञान लें और सिविल सर्जन कार्यालय को या तो वैकल्पिक सुरक्षित भवन में स्थानांतरित करें या भवन की मरम्मत कार्य शीघ्र पूरा कराएं, ताकि भविष्य में कोई अप्रिय घटना न घटे।

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