धर्मेंद्र सोनकर के प्रयासों से ठेका मजदूर के परिवार को टाटा स्टील से मिला विशेष मुआवजा, 10 लाख रुपये की तत्काल राहत, सवा करोड़ तक की सहायता सुनिश्चित

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Jamshedpur : टाटा स्टील के वर्क्स परिसर स्थित कोल वैगन सेक्शन में 16 जून को हुई एक दर्दनाक दुर्घटना के बाद ठेका मजदूर सुनील कुमार सिंह की मौत ने न केवल औद्योगिक सुरक्षा पर सवाल उठाए, बल्कि ठेका कर्मचारियों के अधिकारों और मुआवजा प्रणाली पर भी एक नई बहस छेड़ दी। लेकिन इसी अंधकार में उम्मीद की एक किरण बनकर सामने आए कांग्रेस के कार्यकारी जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र सोनकर, जिनके हस्तक्षेप से मृतक परिवार को तुरंत 10 लाख रुपये की राहत और सवा करोड़ रुपये से अधिक की दीर्घकालिक सहायता सुनिश्चित हो सकी।

मृतक था टाटा स्टील के वेंडर का कर्मचारी, मुआवजे पर शुरू में नहीं बन पाई सहमति

बिहार के सासाराम निवासी 34 वर्षीय सुनील कुमार सिंह की नियुक्ति टाटा स्टील में कार्यरत वेंडर मेसर्स राइट्स लिमिटेड के माध्यम से हुई थी। वह टी एंड एम सर्विसेज कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड, मुंबई का कर्मचारी था। हादसे के बाद जब मुआवजे की बात उठी, तो शुरुआत में टाटा स्टील प्रबंधन का रवैया तकनीकी सीमाओं का हवाला देने वाला और मुआवजा देने से कतराने वाला नजर आया। प्रबंधन सिर्फ मासिक पेंशन योजना पर अड़ा हुआ था।

परिवार ने शव को रोका, धर्मेंद्र सोनकर के हस्तक्षेप से बदला पूरा परिदृश्य

निराश और आहत परिवार ने धर्मेंद्र सोनकर से संपर्क किया। सोनकर ने न सिर्फ मामले को मानवीय दृष्टिकोण से देखने की जरूरत जताई, बल्कि साफ कर दिया कि जब तक सम्मानजनक मुआवजा तय नहीं होता, परिवार शव का दाह-संस्कार नहीं करेगा। इसके बाद प्रबंधन पर सामाजिक और नैतिक दबाव बढ़ा और नई वार्ता शुरू हुई

10 लाख की तत्काल सहायता और सवा करोड़ रुपये का दीर्घकालिक सहयोग

अंततः, धर्मेंद्र सोनकर की मध्यस्थता से परिवार और प्रबंधन के बीच एक सहमति बनी, जिसके अंतर्गत:

  • ₹7 लाख की तत्काल सहायता राशि

  • ₹2.5 लाख का इंश्योरेंस कवर

  • लगभग ₹35,000 प्रति माह की पेंशन, जो आगामी 26 वर्षों तक दी जाएगी
    (कुल सहायता राशि का अनुमानित योग: ₹1.25 करोड़ से अधिक)

परिवार ने जताया आभार, सोनकर की सराहना

यह मुआवजा किसी जान की भरपाई तो नहीं कर सकता, लेकिन पीड़ित परिवार के लिए यह आर्थिक सुरक्षा और सम्मानजनक भविष्य का आधार अवश्य बन गया है। सुनील कुमार सिंह के परिजनों ने धर्मेंद्र सोनकर के निस्वार्थ हस्तक्षेप की प्रशंसा करते हुए उन्हें संकट की घड़ी में “सच्चा जनसेवक” बताया।

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