


जमशेदपुर, 1 मई 2025
छत्तीसगढ़ समाज ने एक बार फिर अपनी पुरानी सांस्कृतिक परंपरा को सहेजते हुए गुड्डा-गुड़िया की शादी का आयोजन धूमधाम से किया। समाज की यह अनूठी परंपरा हर वर्ष नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति से जोड़ने के उद्देश्य से निभाई जाती है, जिसमें महिलाएं, पुरुष, युवा और बच्चे उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं।
गुड्डा-गुड़िया की शादी की शुरुआत मेहंदी रस्म से हुई, जिसमें बड़ी संख्या में महिलाएं और युवतियां शामिल हुईं। वे शादी के पारंपरिक गीतों पर नाचते-गाते, मेहंदी लगाते और एक-दूसरे को बधाइयां देते नजर आईं। माहौल पूरी तरह से शादी समारोह जैसा था—जहां दुल्हन बनी गुड़िया को सजाया गया, हल्दी रस्म भी निभाई गई, और शाम को बारात निकली।
शादी की सभी रस्मों का पालन बिल्कुल उसी तरह किया गया, जैसे किसी इंसान की शादी में होता है। रात में विवाह और पार्टी का आयोजन हुआ, जिसमें समाज के सैकड़ों लोग बतौर बराती शामिल हुए और पूरी रात खुशियों और उल्लास का माहौल बना रहा।
इस अवसर पर समाज की महिलाओं और परिजनों ने बताया कि यह परंपरा हमारे बच्चों को संस्कृति और मूल्यों से जोड़ती है।
> “हमारा प्रयास है कि यह विरासत हमारी आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचे। यह सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि हमारी पहचान का प्रतीक है।” – एक महिला परिजन की बाइट।
> “हर साल की तरह इस बार भी पूरा समाज एक परिवार की तरह इस आयोजन में जुटा। बच्चे भी इससे सीखते हैं कि विवाह सिर्फ रस्में नहीं, रिश्तों की अहमियत है।” – दूसरी महिला परिजन की बाइट।
यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक जागरूकता को बढ़ावा देता है, बल्कि समाज में सामूहिकता और एकजुटता का भी प्रतीक बन चुका है।
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