हरमू अस्पताल विवाद और पलामू आदिवासी उत्पीड़न मामला: NCST की सख्ती
नई दिल्ली | राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (NCST) ने झारखंड में दो अहम मामलों—रांची के हरमू अस्पताल विवाद और पलामू में आदिवासी लड़की के उत्पीड़न—पर सख्त कार्रवाई करते हुए अधिकारियों को तलब किया है। आयोग की सदस्य डॉ. आशा लकड़ा ने रांची नगर निगम प्रशासक और पलामू उपायुक्त (DC) की गैरमौजूदगी पर नाराजगी जताई है।
हरमू अस्पताल मामला: प्रशासक की गैरमौजूदगी पर नाराज NCST
रांची नगर निगम के अंतर्गत आने वाले हरमू अस्पताल भवन को लेकर आयोग ने नगर निगम प्रशासक संदीप सिंह को समन भेजा था। हालांकि, प्रशासक ने आयोग के समक्ष उपस्थित होने के बजाय प्रशासनिक कार्यों की व्यस्तता का हवाला दिया।
आयोग ने इस तर्क को अस्वीकार्य बताते हुए नाराजगी जताई। प्रशासक की जगह अपर प्रशासक संजय कुमार आयोग के सामने पेश हुए और आश्वासन दिया कि तीन दिनों के भीतर हरमू अस्पताल से जुड़े दस्तावेज ई-मेल के जरिए उपलब्ध कराए जाएंगे।
डॉ. आशा लकड़ा ने निर्देश दिया कि अगली सुनवाई में संदीप सिंह की व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य होगी।
पलामू आदिवासी उत्पीड़न मामला: DC के खिलाफ वारंट जारी हो सकता है
पलामू जिले में एक आदिवासी लड़की का सिर मुंडवाकर घुमाने की घटना पर NCST ने सख्त कार्रवाई करते हुए जिला उपायुक्त शशि रंजन को तलब किया था।
चौंकाने वाली बात यह रही कि DC न सिर्फ आयोग के समक्ष अनुपस्थित रहे, बल्कि कोई जवाब भी नहीं दिया। इस पर डॉ. आशा लकड़ा ने नाराजगी जताते हुए कहा कि यह आदिवासी समाज के प्रति प्रशासन की लापरवाही और न्यायिक प्रक्रिया की अवहेलना है।
उन्होंने स्पष्ट चेतावनी दी कि यदि अगली सुनवाई में उपायुक्त उपस्थित नहीं होते, तो उनके खिलाफ वारंट जारी किया जाएगा।
पहले भी भेजे गए थे नोटिस, लेकिन DC ने नहीं दी सफाई
पलामू डीसी को पहले भी दो नोटिस और दो समन भेजे जा चुके हैं, लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए आयोग ने झारखंड सरकार के मुख्य सचिव को भी पत्र भेजा है।
डॉ. आशा लकड़ा ने कहा कि आदिवासी समाज गरीब और शोषित वर्ग से आता है, ऐसे में उनके अधिकारों की अनदेखी बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
NCST का सख्त संदेश: आदिवासी अधिकारों की अनदेखी नहीं होगी सहन
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि आदिवासियों के अधिकारों और न्याय से कोई समझौता नहीं किया जाएगा। आयोग ने निर्देश दिया है कि संबंधित अधिकारी अगली सुनवाई में अनिवार्य रूप से उपस्थित हों।
अब देखने वाली बात होगी कि प्रशासन आयोग के निर्देशों का पालन करता है या नहीं। यदि अधिकारियों की लापरवाही जारी रहती है, तो कड़ी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
