तुर्की की नीति को संतुलित करने के लिए भारत का अहम कदम, व्यापार और ऊर्जा सहयोग को मिलेगा नया विस्तार
नई दिल्ली/निकोसिया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साइप्रस यात्रा भारत की “मूक लेकिन प्रभावी कूटनीति” की एक बेजोड़ मिसाल बनकर उभरी है। इस यात्रा ने न सिर्फ भारत और साइप्रस के पारंपरिक संबंधों को एक नई ऊँचाई दी, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब वैश्विक राजनीति में तात्कालिक प्रतिक्रियाओं की जगह दीर्घकालिक संतुलन और रणनीतिक भागीदारी को प्राथमिकता दे रहा है।यह यात्रा ऐसे समय हुई है जब भारत को संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) जैसे मंचों पर तुर्की की बार-बार की गई कश्मीर संबंधी टिप्पणियों का सामना करना पड़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी ने सीधे जवाब देने के बजाय, कूटनीतिक तरीकों से अपने प्रभाव क्षेत्र को मजबूत करने की दिशा में यह अहम कदम उठाया है।
कूटनीतिक संदेश: तुर्की के प्रभाव की परोक्ष काट
तुर्की की आक्रामक विदेश नीति और एर्दोआन की धार्मिक-राजनीतिक बयानबाज़ी का भारत ने हमेशा संयमित प्रतिरोध किया है। लेकिन अब, साइप्रस जैसे देशों के साथ भारत की साझेदारी उस परोक्ष जवाब की रणनीति है, जो बिना टकराव के भू-राजनीतिक संतुलन को साधने का प्रयास करती है।
प्रधानमंत्री मोदी की साइप्रस यात्रा के प्रमुख उद्देश्य:
- राजनयिक संबंधों को सुदृढ़ करना: साइप्रस की क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करते हुए भारत ने फिर यह संदेश दिया कि वह अंतरराष्ट्रीय कानून और संप्रभुता का पक्षधर है।
- रणनीतिक गठजोड़: समुद्री सहयोग, रक्षा, साइबर सुरक्षा और आतंकवाद के खिलाफ समन्वित कार्रवाई की दिशा में साझा सहमति बनी।
- ऊर्जा और तकनीकी साझेदारी: ग्रीन हाइड्रोजन, सोलर एनर्जी, डिजिटल परिवर्तन और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में द्विपक्षीय निवेश की सहमति।
भारत–साइप्रस संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
1960 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद साइप्रस 1974 में तुर्की के हस्तक्षेप का शिकार हुआ, जिसके चलते देश दो हिस्सों में बंट गया। भारत ने तब से ही साइप्रस की संप्रभुता का समर्थन किया है। यह यात्रा इस परंपरा को मजबूती देते हुए नई सदी की साझेदारी को गति प्रदान करती है।
भारत को साइप्रस से क्या लाभ?
- यूरोपीय संघ के दरवाज़े पर स्थित होने से यूरोपीय बाज़ार तक सीधा पहुंच।
- डबल टैक्सेशन ट्रीटी से निवेशकों को लाभ।
- फिनटेक, मेडिकल, स्टार्टअप्स और शिक्षा में सहयोग की अपार संभावनाएँ।
- शिपिंग हब के रूप में साइप्रस, भारत के समुद्री व्यापार के लिए रणनीतिक प्रवेश द्वार।
साइप्रस को भारत से क्या लाभ?
- विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था से प्रत्यक्ष जुड़ाव।
- साइप्रस की उच्च शिक्षा और पर्यटन सेक्टर में भारतीय छात्रों व पर्यटकों की भागीदारी।
- तकनीकी विशेषज्ञता व डिजिटल सहयोग से द्वीप की अर्थव्यवस्था को मजबूती।
- तुर्की के दबाव को संतुलित करने हेतु राजनयिक सहयोग।
गठबंधन की नई चौकड़ी: भारत–साइप्रस–ग्रीस–इज़रायल
भारत की यह यात्रा केवल द्विपक्षीय नहीं, बल्कि एक क्षेत्रीय कूटनीतिक ढांचे की भी नींव रखती है, जिसमें साइप्रस, ग्रीस और इज़रायल के साथ भारत की मजबूत त्रिकोणीय साझेदारी भविष्य की Act West Policy का अहम हिस्सा बन सकती है। यह रणनीति तुर्की के क्षेत्रीय प्रभाव को सीमित करने में सहायक होगी।
प्रमुख समझौते और घोषणाएँ:
- डबल टैक्सेशन ट्रीटी को अद्यतन किया गया
- साइबर सुरक्षा और डिजिटल परिवर्तन में सहयोग
- ग्रीन हाइड्रोजन, सोलर एनर्जी में संयुक्त निवेश
- शिक्षा, संस्कृति और स्वास्थ्य में साझा कार्यक्रम