Jamshedpur : संथाली सिनेमा के इतिहास और विकास को समर्पित पहली पुस्तक जल्द ही पाठकों के बीच होगी। संथाली भाषा, जो भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित है, ने अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के माध्यम से फिल्मों के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है। संथाली सिनेमा ने समय के साथ इस भाषा के प्रचार-प्रसार में अहम भूमिका निभाई है। अब, इस पर एक पुस्तक का प्रकाशन होने जा रहा है, जिसे संथाली सिनेमा के प्रति गहरी रुचि रखने वाले पाठकों के लिए एक अनमोल धरोहर माना जा रहा है।

इस पुस्तक के लेखक रमेश हांसदा, जो संथाली सिनेमा से लंबे समय से जुड़े हुए हैं, ने प्रसिद्ध संथाली फिल्मकार दशरथ हांसदा के योगदान को केंद्र में रखते हुए इसे तैयार किया है। पुस्तक का नाम है “संताली सिनेमा और दशरथ हांसदा: एक अनकही कहानी” (हिंदी), “संताडी सिनेमा आर दशरथ हांसदा हाक जियोंन काहनी” (संताली ओल चिकी), और “दशरथ हांसदा: ए पिलर ऑफ़ संताली सिनेमा ए अनटोल्ड स्टोरी” (अंग्रेजी)। यह पुस्तक तीन भाषाओं में प्रकाशित की जाएगी, जिससे अधिक से अधिक पाठक वर्ग इसे पढ़ सकेंगे।
पुस्तक लगभग 100 पृष्ठों की है, जिसमें संथाली सिनेमा के विकास की यात्रा को क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें संथाली सिनेमा के प्रारंभिक दौर, जैसे गंगाधर हेम्ब्रम की वीडियो फिल्म ‘सारथी नाचार’ से लेकर पहले सेल्यूलाइड फिल्म ‘चांदो लिखोन’ तक का विस्तृत विवरण दिया गया है। इसके अलावा, दशरथ हांसदा द्वारा निर्मित प्रमुख फिल्मों, जैसे “सगुना एना सुहाग दुलड” और “सीता नाला रे सागुन सुपारी” के निर्माण की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला गया है।इस पुस्तक में झारखंड के प्रमुख राजनेताओं जैसे रामदास सोरेन, हेमंत सोरेन, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास की सिनेमा क्षेत्र में भूमिका का भी उल्लेख किया गया है। साथ ही, यह भी बताया गया है कि इन नेताओं ने सिनेमा के माध्यम से जनसंपर्क और सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा दिया।

पुस्तक में दशरथ हांसदा की निजी जीवन यात्रा, उनके संघर्ष, सपनों और उपलब्धियों को भी गहराई से प्रस्तुत किया गया है। लेखक ने अपने वर्षों के अनुभव, शोध और संकलन के आधार पर संथाली सिनेमा के इतिहास को सहेजने का प्रयास किया है।इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद यह उम्मीद की जा रही है कि यह संथाली सिनेमा पर शोध करने वाले विद्यार्थियों, फिल्म प्रेमियों और भाषा-संस्कृति के जानकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत बनेगी। यह न केवल संथाली सिनेमा का दस्तावेज है, बल्कि इस क्षेत्र के इतिहास को आगे बढ़ाने और संरक्षित करने का एक सशक्त माध्यम भी बन सकती है।
