एंटीबायोटिक दवाओं का संकट: ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल बनाम ज़रूरतमंदों की पहुंच का अभाव

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📍 नई दिल्ली | 04 जुलाई 2025

🌐 दुनियाभर में एक तरफ़ जहां एंटीबायोटिक्स का अत्यधिक उपयोग रोगाणुओं में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा रहा है, वहीं दूसरी ओर गरीब और मध्यम आय वर्ग के देशों में करोड़ों लोग ऐसे संक्रमण से जूझ रहे हैं जिनका इलाज संभव है – लेकिन उन्हें सही दवाएं ही उपलब्ध नहीं हैं।

यह क्रूर विरोधाभास हाल ही में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में सामने आया है, जिसमें कहा गया है कि ज़रूरतमंदों को एंटीबायोटिक्स तक पहुंच नहीं होने के कारण हजारों जानें जा रही हैं।

📊 रिपोर्ट के प्रमुख तथ्य:

ग्लोबल एंटीबायोटिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट पार्टनरशिप (GARDP) द्वारा किए गए अध्ययन में भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका समेत 8 देशों में 15 लाख से अधिक गंभीर संक्रमण के मामलों का विश्लेषण किया गया।

कार्बापेनम प्रतिरोधी ग्राम-नेगेटिव (CRGN) बैक्टीरिया से संक्रमित लोगों में से सिर्फ़ 6.9% को ही उपयुक्त इलाज मिल सका।

भारत में कुल 80% एंटीबायोटिक कोर्स खरीदे गए, फिर भी इलाज केवल 7.8% मरीज़ों तक ही सीमित रहा।

टाइगेसाइक्लिन, जो कि CRGN संक्रमण के इलाज में सबसे अधिक उपयोगी दवा मानी जाती है, उसके केवल 1 लाख 3 हजार कोर्स खरीदे गए जबकि आवश्यकता 15 लाख कोर्स की थी।


🧫 क्या हैं CRGN संक्रमण?

CRGN बैक्टीरिया आमतौर पर जल, भोजन और मानव आंतों में पाए जाते हैं।

ये यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI), निमोनिया और फूड पॉइजनिंग जैसी बीमारियों का कारण बन सकते हैं।

नवजात, बुज़ुर्ग और आईसीयू में भर्ती रोगियों के लिए ये जानलेवा साबित हो सकते हैं।


🩺 भारत में क्यों नहीं मिल पाती सही दवा?

विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में स्वास्थ्य व्यवस्था की कमजोर बुनियाद, महंगी दवाएं, और खराब वितरण प्रणाली इसका मुख्य कारण हैं।

गरीब मरीज अक्सर महंगी एंटीबायोटिक खरीदने में असमर्थ होते हैं, जबकि अमीर तबका इनका अंधाधुंध उपयोग करता है।

कई अस्पतालों में संक्रमण विशेषज्ञ या माइक्रोबायोलॉजिस्ट की अनुमति के बिना ही एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं, जिससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।


🗣️ विशेषज्ञों की राय:

डॉ. गफूर कहते हैं —
“जो मरीज एंटीबायोटिक खरीद सकते हैं वे उसका दुरुपयोग कर रहे हैं, और जो नहीं खरीद सकते वे इलाज से वंचित हैं। यह एक भयानक असमानता है।”

डॉ. जेनिफ़र कोन, GARDP की वरिष्ठ शोधकर्ता, बताती हैं —
“दवाओं तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ उनके विवेकपूर्ण उपयोग के लिए नीति बनाना भी जरूरी है।”

🧪 समाधान क्या हो सकता है?

अस्पतालों में हर एंटीबायोटिक के पर्चे पर संक्रमण विशेषज्ञ की मंजूरी को अनिवार्य बनाना।

गरीबों के लिए एंटीबायोटिक की सब्सिडी या मुफ्त उपलब्धता की व्यवस्था।

नई एंटीबायोटिक दवाओं के विकास और लाइसेंसिंग को बढ़ावा देना।

डेटा-संचालित स्थानीय स्वास्थ्य नीति बनाना जिससे ज़रूरत का सही अनुमान लगाया जा सके।


📍 भारत की भूमिका महत्वपूर्ण

भारत न केवल एंटीबायोटिक खपत में अग्रणी है, बल्कि एक सशक्त फार्मास्युटिकल उद्योग के कारण वैश्विक AMR (Antimicrobial Resistance) इनोवेशन का केंद्र भी बन सकता है। केरल जैसे राज्य पहले ही “हब एंड स्पोक” मॉडल के जरिए स्थानीय स्वास्थ्य केंद्रों को गंभीर संक्रमण से निपटने में समर्थ बना रहे हैं।


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