जमशेदपुर, 29 जून 2025:
“धीर बनो किंतु आलसी मत बनो, दीर्घसूत्री मत बनो” — श्रीश्री ठाकुर अनुकूल चंद्र जी द्वारा रचित यह सूत्र आज भी मानव जीवन में सफलता और सुख का अमूल्य मंत्र है। उनका स्पष्ट संदेश है कि इष्टप्रतिष्ठा ही सम्पूर्ण परिवार और समाज को सुदृढ़ बनाने का एकमात्र आधार है।
श्रीश्री ठाकुर जी ने अर्जुन और हनुमान जैसे महापुरुषों का उदाहरण देकर बताया कि विनम्रता, निष्ठा और समयबद्ध कर्म ही जीवन को सार्थक बनाते हैं। अर्जुन की सफलता उनकी विनम्रता और गुरु भक्ति में थी, वहीं हनुमान जी ने श्रद्धा से असंभव को संभव कर दिखाया।
देवघर सत्संग आश्रम में श्रद्धालुओं द्वारा एक ही दिन में घंटाघर का निर्माण इसी भावना का प्रमाण है कि जब व्यक्ति आलस्य त्यागकर प्रभु कार्य में जुटता है, तो कोई कार्य असंभव नहीं होता।
प्रख्यात वैज्ञानिक कृष्ण प्रसन्न भट्टाचार्य ने भी अमेरिका जाने की बजाय प्रभु चरणों में जीवन समर्पित किया और उनके प्रयास से 22 खंडों में आलोचना प्रसंग तैयार हुआ। श्रीश्री ठाकुर जी स्वयं समय के इतने पाबंद थे कि कठिन परिस्थिति में भी कभी अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हुए।
वर्तमान आचार्यदेव भी उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए समाज को कर्मनिष्ठ जीवन की प्रेरणा दे रहे हैं। उनका संदेश स्पष्ट है – आलस्य और टालमटोल दुखों की जड़ हैं। प्रभु की इच्छा है कि हम परिवार और समाज को मजबूत करें, गुरु को सर्वोपरि मानें और समयबद्ध कर्म करें।
यही इष्टप्रतिष्ठा का सार है – जो व्यक्ति को सफलता और आनंद की ओर ले जाता है।
