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Jamshedpur : गर्भस्थ शिशु की देखभाल से लेकर जन्म के बाद के पोषण तक, बच्चों का स्वास्थ्य पूरी तरह माता-पिता की जीवनशैली और खानपान पर निर्भर करता है। अमेरिकी वैज्ञानिकों और विश्व के अन्य शोध संस्थानों ने चेतावनी दी है कि यदि समय रहते कुपोषण को नियंत्रित नहीं किया गया तो बच्चों में एंटीबायोटिक प्रतिरोध और मस्तिष्क विकास संबंधी गंभीर खतरे बढ़ सकते हैं।

मेट्रो ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के चेयरमैन तथा पद्मविभूषण से सम्मानित डॉ. पुरुषोत्तम लाल के अनुसार, गर्भस्थ माताओं की जीवनशैली और खानपान का सीधा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर पड़ता है। धूम्रपान, शराब, नशे की लत, असंतुलित आहार और सामाजिक अलगाव जैसी आदतें शिशु को जन्मजात बीमारियों की ओर धकेल सकती हैं।

हाल ही में अमेरिका के आईनियस ऑक्सफोर्ड (IOI) संस्थान ने एक शोध में पाया कि पाँच वर्ष से कम आयु के गंभीर कुपोषित बच्चों में एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंस का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। यानी ऐसे बच्चों में बैक्टीरिया दवाइयों के खिलाफ प्रतिरोधी बन जाते हैं, जिससे उनका इलाज कठिन हो जाता है।

कुपोषण का सीधा संबंध गरीबी, अज्ञानता, अशिक्षा, भोजन की कमी और स्वास्थ्य सेवाओं की अनुपलब्धता से है। इसके अलावा मानसिक अस्वस्थता और असंतुलित खानपान भी इसके बड़े कारण हैं। विकसित और विकासशील देशों दोनों में यह समस्या एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न स्थित साउथ बेल्स विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 61 देशों के 1.45 करोड़ छात्रों पर अध्ययन कर बताया कि लंबे समय तक अधिक तापमान में रहने से बच्चों की संज्ञानात्मक क्षमता (Cognitive Ability) पर नकारात्मक असर पड़ता है। उच्च तापमान दिमाग और रक्त के बीच अवरोध को तोड़ देता है, जिससे मस्तिष्क में सूजन और कोशिकाओं की मृत्यु होने लगती है।

भारत में अस्सी करोड़ से अधिक लोग मुफ्त राशन योजना पर निर्भर हैं। ऐसे में संतुलित आहार, प्रोटीन, विटामिन और स्वच्छ जल जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी करना अभी भी चुनौती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति नहीं सुधरती, तब तक कुपोषण जैसी समस्याएं बनी रहेंगी।

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