New Delhi : सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बीमा विवाद पर फैसला सुनाते हुए बीमा कंपनी की नीतिगत शर्तों को “बेतुका” करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यदि बीमा पॉलिसी में यह शर्त रखी जाती है कि बीमाकर्ता केवल उसी स्थिति में उत्तरदायी होगा जब वाहन बीमित परिसर के भीतर हो, तो यह एक अव्यावहारिक और अनुचित शर्त है।
मामला एक टाटा हिताची हैवी ड्यूटी क्रेन से जुड़ा था, जिसका बीमा कराया गया था। वर्ष 2007 में, टाटा स्टील, जमशेदपुर के बिजलीघर में क्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई थी। क्रेन का बूम गिरने से भारी क्षति हुई। बीमाधारक ने क्रेन की मरम्मत करवाई और बीमा राशि की मांग की। हालांकि, बीमा कंपनी ने दो साल बाद दावा खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि दुर्घटना बीमाधारक के परिसर के बाहर हुई थी।
कोर्ट ने बीमा शर्तों पर उठाए सवाल
सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि क्रेन का उपयोग स्वाभाविक रूप से निर्माण स्थलों पर होता है, न कि केवल किसी कार्यालय परिसर के भीतर। कोर्ट ने कहा,
“बीमा कंपनी की स्थिति यह है कि दुर्घटना केवल बीमित परिसर में होनी चाहिए, तभी दावा स्वीकार होगा। लेकिन क्या क्रेन केवल कार्यालय में खड़ी रहने के लिए खरीदी जाती है? बीमाकर्ता और बीमाधारक, दोनों ने ही इस असंगत शर्त पर ध्यान नहीं दिया।”
अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि बीमा कंपनी को दावा अस्वीकार करने में दो साल का समय क्यों लगा, जबकि दुर्घटना को लेकर कोई विवाद नहीं था, न ही नुकसान की मात्रा पर कोई असहमति थी।
बीमा कंपनी को 40 लाख रुपये देने का निर्देश
सुप्रीम कोर्ट ने पहले बीमा कंपनी को उचित मुआवजे का भुगतान करने पर विचार करने को कहा। इसके बाद, बीमा कंपनी ने 40 लाख रुपये तक भुगतान करने की सहमति जताई, लेकिन 45 लाख रुपये से अधिक देने से इनकार कर दिया। अदालत ने करों सहित 40 लाख रुपये की राशि अदा करने का निर्देश देते हुए मामले का निपटारा कर दिया।
यह फैसला बीमा पॉलिसी की अनुचित शर्तों को लेकर महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है, जिससे भविष्य में बीमाधारकों के हितों की बेहतर सुरक्षा हो सकेगी।
