10 वर्षीय बच्ची ने कैंसर मरीजों के लिए अपने बाल दान कर दिखाई करुणा और सामाजिक ज़िम्मेदारी की मिसाल
जमशेदपुर, जून 2025: आज के दौर में जब भौतिक उपलब्धियों और व्यक्तिगत सफलता को अक्सर प्राथमिकता दी जाती है, ऐसे समय में दया, करुणा और साझा करने जैसे मानवीय मूल्य धीरे-धीरे पीछे छूटते जा रहे हैं। लेकिन लॉयला स्कूल, जमशेदपुर की एक 10 वर्षीय छात्रा माया ने अपने छोटे से पर गहरे असर डालने वाले कदम से यह साबित कर दिया कि देने और बाँटने की भावना न केवल बच्चों में विकसित की जा सकती है, बल्कि वे समाज को प्रेरित भी कर सकते हैं।माया ने अप्रैल 2025 में कैंसर पीड़ित मरीजों के लिए अपने बाल दान करने का निर्णय लिया। यह एक ऐसा कदम था जिसने सभी को चौंकाया, भावुक किया और सबसे बढ़कर – प्रेरित किया। बाल वय में इस प्रकार की सामाजिक चेतना दुर्लभ है, और यही माया की कहानी को खास बनाता है।

एक छोटा कदम, बड़ा प्रभाव
कैंसर के इलाज के दौरान बाल झड़ना न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्तर पर भी रोगियों को प्रभावित करता है। ऐसे में माया का बाल दान करना केवल एक भौतिक योगदान नहीं, बल्कि एक भावनात्मक सहारा भी है। यह कार्य बच्चों में करुणा, संवेदना और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना कैसे उत्पन्न की जा सकती है, इसका एक जीवंत उदाहरण है।
माया से मिली सीख: क्यों ज़रूरी है बच्चों को बाँटने की महत्ता सिखाना?
बच्चों में देने और बाँटने के मूल्य विकसित करने से वे न केवल संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण बनते हैं, बल्कि वे समाज के ज़िम्मेदार नागरिक भी बनते हैं। नीचे दिए गए कुछ प्रमुख कारणों से यह शिक्षा आवश्यक बन जाती है:
- सहानुभूति का विकास:
जब बच्चे किसी ज़रूरतमंद की मदद करते हैं या अपनी किसी प्रिय वस्तु को किसी के साथ बाँटते हैं, तो वे दूसरों की परिस्थितियों को समझने और उनसे जुड़ने लगते हैं। इससे वे भावनात्मक रूप से अधिक परिपक्व बनते हैं। - दयालुता और मानवता को बढ़ावा:
दान और बाँटने की भावना बच्चों को दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करती है। यह एक ऐसी आदत है जो जीवन भर साथ रहती है। - सामाजिक जिम्मेदारी की समझ:
जब बच्चे सीखते हैं कि उनके छोटे कार्य भी किसी की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव ला सकते हैं, तो वे समाज के प्रति अपनी भूमिका को गंभीरता से समझने लगते हैं। - आत्मविश्वास और आत्मसंतोष:
माया जैसे उदाहरण बच्चों को यह अनुभव कराते हैं कि दूसरों की भलाई के लिए किए गए कार्य आत्मिक संतुष्टि और आत्मबल प्रदान करते हैं।

माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका
बच्चों को बाँटने की महत्ता सिखाने में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। घर और स्कूल को ऐसे माहौल में परिवर्तित करना होगा जहाँ सहयोग, करुणा और सेवा को सम्मान मिले। माया की तरह बच्चों को प्रोत्साहित करना होगा कि वे अपने आसपास की दुनिया को समझें और जहां संभव हो, वहाँ योगदान दें।

