जमशेदपुर। 1990 के दशक से पहले शहरों और गाँवों में डायबिटीज और हाइपरटेंशन जैसी बीमारियाँ बहुत कम थीं। लेकिन आज हर घर में कम से कम एक व्यक्ति इस समस्या से जूझता दिखाई देता है। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके पीछे हमारे खानपान में बदलाव और एक खास आदत का गायब होना जिम्मेदार है — दातून करना।
गाँवों और देहातों में आज भी लोग दातून का नियमित इस्तेमाल करते हैं। नतीजा यह है कि वहाँ डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों की संख्या नगण्य है। शहरों में टूथपेस्ट और माउथवॉश का अत्यधिक इस्तेमाल हमारे मुंह के अच्छे बैक्टिरिया को नष्ट कर देता है, जो नाइट्रिक ऑक्साइड (NO) का उत्पादन कर ब्लड प्रेशर और इंसुलिन रेसिस्टेंस को नियंत्रित करते हैं।
जर्नल ऑफ क्लिनिकल हायपरेटेंशन (2004) और ब्रिटिश डेंटल जर्नल (2018) जैसी अंतरराष्ट्रीय स्टडीज में साबित हुआ है कि माउथवॉश का रोजाना इस्तेमाल डायबिटीज और प्री-डायबिटिक कंडीशन को बढ़ावा दे सकता है।
वहीं, दातून में मौजूद बबूल और नीम के प्राकृतिक कंपाउंड्स स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटेंस जैसे हानिकारक बैक्टिरिया को मारते हैं, लेकिन लार में मौजूद उन बैक्टिरिया को नहीं, जो नाइट्रिक ऑक्साइड बनाने में मदद करते हैं। इसका मतलब, दातून न सिर्फ दांतों को स्वस्थ रखता है बल्कि ब्लड प्रेशर और शुगर कंट्रोल में भी मददगार है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर हम अपनी दातुन की पुरानी आदत को फिर से अपनाएं, तो शहरों में भी डायबिटीज और हाइपरटेंशन की महामारी को काबू में रखा जा सकता है।
ज्यादा माउथवॉश और टूथपेस्ट के इस्तेमाल से सावधान।
दातून करें, लार निगलें और प्राकृतिक तरीके से सेहत बनाए रखें।
गांवों की दातुन संस्कृति सीखने लायक है।
