चांडिल, 28 जुलाई। चांडिल से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया तक बन रहे वैकल्पिक एनएच-32 बाईपास मार्ग को लेकर इन दिनों एक नई बहस तेज़ हो गई है—इस परियोजना का श्रेय आखिर किसे दिया जाए? क्या यह केंद्र सरकार की दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है या रांची के सांसद सह केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री संजय सेठ के व्यक्तिगत प्रयासों का परिणाम?
हाल के दिनों में घोड़ानेगी से पितकी तक के हिस्से को चालू करवाकर संजय सेठ की सक्रियता जरूर दिखी है। रविवार शाम इस मार्ग पर आवागमन की शुरुआत भी कर दी गई, जिससे चांडिल बाजार में लगने वाले भीषण जाम से काफी राहत मिली है। लेकिन सवाल उठता है कि यदि यह निर्माण संजय सेठ के प्रयासों से हो रहा है, तो फिर पश्चिम बंगाल के हिस्से में चल रहा निर्माण किसके प्रयासों से हो रहा है?
केंद्र सरकार की भारतमाला योजना से जुड़ाव
जानकारी के अनुसार, यह वैकल्पिक मार्ग भारत सरकार की “भारत माला परियोजना” के अंतर्गत आता है, जो देशभर में बाजार, रेलवे फाटक और ट्रैफिक से प्रभावित क्षेत्रों में वैकल्पिक मार्गों और फ्लाईओवर के निर्माण की एक बड़ी योजना है। वर्ष 2018 से ही इस मार्ग के लिए भूमि अधिग्रहण और चौड़ीकरण का काम प्रारंभ हो चुका था।
देश के अन्य राज्यों में भी इसी तरह के वैकल्पिक मार्ग बनाए जा रहे हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि यह परियोजना केंद्र की नियोजित रणनीति का हिस्सा है।
अधूरे काम और अधूरी उम्मीदें
हालांकि इस मार्ग के कुछ हिस्से जैसे पितकी, जामडीह और श्यामनगर (पश्चिम बंगाल) में स्थित रेलवे फाटकों पर फ्लाईओवर का कार्य अभी तक अधूरा है। परियोजना को दिसंबर 2025 तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है, लेकिन निर्माण की धीमी गति चिंता का विषय बनी हुई है।
श्रेय के साथ उठते हैं अन्य जरूरी सवाल
यदि चांडिल-पुरुलिया वैकल्पिक मार्ग का श्रेय संजय सेठ को दिया जाए, तो उनके संसदीय क्षेत्र की अन्य समस्याओं की ओर भी नजर डालना जरूरी हो जाता है।
टाटा-रांची टोल रोड की बदहाली और आए दिन होने वाली दुर्घटनाएं अब भी समाधान की राह तक रही हैं।
चिलगु पुल, जो पिछले 10 महीनों से बंद है और जिसके चलते कई जानें जा चुकी हैं, आज भी मरम्मत का इंतज़ार कर रहा है।
एनएचएआई द्वारा बनाए गए वनवे मार्ग ने चिलगु-शहरबेड़ा क्षेत्र को अत्यंत जोखिमपूर्ण बना दिया है, और पीड़ितों में अधिकतर रांची संसदीय क्षेत्र के निवासी हैं।
जनप्रतिनिधि का मूल्यांकन संपूर्ण कार्य से हो
चांडिल क्षेत्र में संजय सेठ की मांग पत्र, निर्माण एजेंसियों पर दबाव और उद्घाटन जैसी पहलें निश्चित रूप से उनकी सक्रियता को दर्शाती हैं। लेकिन जब परियोजना का प्रारंभ केंद्र सरकार द्वारा पहले ही स्वीकृत किया जा चुका था और पश्चिम बंगाल हिस्से का निर्माण पहले से चल रहा है, तो इसे पूरी तरह किसी एक व्यक्ति के प्रयासों का परिणाम कहना उचित नहीं होगा।
इसलिए, इस वैकल्पिक मार्ग का श्रेय किसे मिलना चाहिए, इसका निर्णय जनता के विवेक पर छोड़ा जाना चाहिए।
