जमशेदपुर, 24 जून 2024 – समाजवादी चिंतक एवं वरिष्ठ अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने झारखंड में जाति प्रमाण पत्र को लेकर की जा रही अनियमितताओं पर कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि खातियान (राजस्व अभिलेख) के अभाव में जाति प्रमाण पत्र जारी करने से इनकार करना भारतीय संविधान के मूल अधिकारों का उल्लंघन है।
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बदनाम करने की साजिश
सुधीर पप्पू ने आरोप लगाया कि राज्य के कुछ सरकारी कर्मचारी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ माहौल बनाने में लगे हैं, ताकि यह दर्शाया जा सके कि वे पिछड़े वर्गों के विरोधी हैं। उन्होंने इसे एक सुनियोजित साजिश करार दिया, जिसका उद्देश्य सामाजिक न्याय की अवधारणा को ध्वस्त करना है।
> “खातियान को अनिवार्य बताकर जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार करना पूरी तरह से असंवैधानिक है। यह एक संवैधानिक अधिकारों पर हमला है,” – सुधीर पप्पू, अधिवक्ता
सरकारी भर्तियों और नामांकन में बाधा
पप्पू ने कहा कि झारखंड सरकार वर्तमान में सरकारी नौकरियों में बड़ी संख्या में नियुक्तियां कर रही है और उच्च शिक्षा के लिए दाखिले चल रहे हैं। ऐसे में यदि अभ्यर्थियों को जाति प्रमाण पत्र नहीं मिल पाता, तो वे शुल्क राहत, आरक्षण और प्रवेश की पात्रता से वंचित रह जाएंगे।
झारखंड हाईकोर्ट का निर्णय भी प्रस्तुत किया
अधिवक्ता पप्पू ने सिविल रिट पिटीशन संख्या 3186/2011 (शोवित बनाम झारखंड सरकार) का हवाला देते हुए कहा कि झारखंड उच्च न्यायालय ने इस विषय पर पहले ही स्थिति स्पष्ट कर दी है। कोर्ट ने माना है कि—
जाति प्रमाण पत्र जारी करने के लिए खातियान की शर्त आवश्यक नहीं है।
व्यक्ति भूमिधारी हो या भूमिहीन, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
यदि वह अपने दस्तावेजों से अपनी जाति सिद्ध कर देता है तो उसे प्रमाण पत्र देना अनिवार्य है।
मुख्यमंत्री और न्यायपालिका से हस्तक्षेप की अपील
सुधीर पप्पू ने अंत में आग्रह किया कि झारखंड के मुख्यमंत्री और झारखंड उच्च न्यायालय को इस गंभीर मुद्दे पर संज्ञान लेना चाहिए, ताकि ओबीसी, एससी और एसटी समुदायों को उनके संवैधानिक अधिकार दिलाए जा सकें।
—
📌 इट स्क्रिप्ट या वीडियो रिपोर्ट स्क्रिप्ट भी तैयार किया जा सकता है।
