जमशेदपुर – आदिवासी विरासत, संस्कृति और शिल्पकला को समर्पित ‘जोहार हाट’ का नया संस्करण 14 से 20 अगस्त तक प्रकृति विहार, कदमा में आयोजित हो रहा है। यह आयोजन पारंपरिक लोककला, व्यंजन और सांस्कृतिक धरोहर का अनूठा संगम पेश करेगा। इस बार झारखंड, असम और ओडिशा की छह जनजातियां— खरवार, बोडो, उरांव, हो, मुंडा और संथाल —अपनी कला, शिल्प और पारंपरिक जीवनशैली की झलक दिखा रही हैं।
वीर आदिवासी नायकों को श्रद्धांजलि
यह संस्करण उन महान स्वतंत्रता सेनानियों को समर्पित है, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन और सामाजिक अन्याय के खिलाफ संघर्ष किया—
बिरसा मुंडा: ‘उलगुलान’ आंदोलन के प्रणेता और आदिवासी अस्मिता के प्रतीक।
सिद्धो-कान्हू मुर्मू: 1855–56 के संथाल विद्रोह के नायक।
शहीद जिरपा सिंह लाया: नील की जबरन खेती के खिलाफ भूमिज विद्रोह के वीर सेनानी।
पोटो हो: 1836–37 में दक्षिण कोल्हान में ब्रिटिश सेना से लोहा लेने वाले क्रांतिकारी।
आकर्षक सजावट और माहौल
आयोजन स्थल को रंग-बिरंगे कपड़ों की झालरों से सजाया गया है, जो उत्सव का जीवंत माहौल तैयार करता है।
वर्कशॉप और सांस्कृतिक गतिविधियां
बेंत शिल्प निर्माण – पारंपरिक बेंत शिल्प की बारीकियां सीखने का अवसर।
आदिवासी आभूषण निर्माण – पारंपरिक गहनों की तकनीक और महत्व जानने का मौका।
पारंपरिक और फ्यूज़न व्यंजन
यहां आगंतुक झारखंडी थाली, मांसाहारी व शाकाहारी प्लेटर्स, “मड़वा मोमोज़”, और मानसून सीजन के खास कोरियन-फ्यूज़न स्नैक्स का स्वाद ले सकते हैं।
विशेष स्टॉल और प्रदर्शनी
सांगी सोहराय – झारखंड संथाल जनजाति की पारंपरिक सोहराय पेंटिंग्स और हस्तशिल्प।
आदिवासी शिल्प समूह – टेराकोटा और डोकरा कला का प्रदर्शन।
कुजुर प्लस प्रोडक्ट्स – उरांव जनजाति के पारंपरिक अचार।
बोडो चटाई और बेंत शिल्प – असम बोडो जनजाति की खास कारीगरी।
हार्टमेड एसेसरीज़ – हो जनजाति की चित्रकला और गृह सज्जा सामग्री।
गोहालडिही सबई शिल्प – ओडिशा संथाल जनजाति के सबई घास उत्पाद।
द कोरियन कैफ़े – मुंडा जनजाति का झारखंड-कोरिया फ्यूज़न मेन्यू।
नेशनल ट्राइबल ट्रेडिशनल हीलर्स एसोसिएशन – खरवार और संथाल जनजाति की पारंपरिक चिकित्सा विधियां।
‘जोहार हाट’ न सिर्फ आदिवासी संस्कृति को करीब से जानने का अवसर देता है, बल्कि यह आदिवासी कारीगरों और उद्यमियों के लिए अपनी कला और परंपरा को व्यापक मंच पर प्रस्तुत करने का सुनहरा मौका भी है।
