Jamshedpur: जमशेदपुर पश्चिमी के विधायक सरयू राय ने झारखंड सरकार पर सारंडा को लेकर भ्रम फैलाने का आरोप लगाते हुए कहा है कि राज्य सरकार को सारंडा वन क्षेत्र की वास्तविक स्थिति पर एक स्पष्ट श्वेत पत्र (White Paper) जारी करना चाहिए। उन्होंने कहा कि सारंडा जैसे सघन वन क्षेत्र में खनन के साथ-साथ वन संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता की रक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
सरयू राय ने कहा कि सारंडा में लौह अयस्क का खनन 1909 से जारी है और अब तक तीन वर्किंग प्लान (1936-1956, 1956-1976, 1976-1996) तैयार किए जा चुके हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि 1996 के बाद सरकार ने नया वर्किंग प्लान क्यों नहीं बनाया। राय ने कहा कि इन योजनाओं में खनन, वन भूमि संरक्षण और पर्यावरण संतुलन का पूरा ब्यौरा दर्ज है।
उन्होंने सरकार से पूछा कि पूर्व वन मंत्री सुधीर महतो के नेतृत्व में 2009 में भेजे गए 630 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को अभग्न क्षेत्र घोषित करने के प्रस्ताव पर अब तक निर्णय क्यों नहीं हुआ।
राय ने बताया कि मधु कोड़ा सरकार के समय खनन लीज के इतने आवेदन स्वीकृत किए गए थे कि उनका क्षेत्रफल सारंडा के कुल क्षेत्रफल से भी अधिक था। उन्होंने कहा कि इसी दौरान अवैध खनन की भी भरमार रही, जिस पर उन्होंने तत्कालीन विधानसभा में सवाल उठाया था।
विधायक ने याद दिलाया कि एम.बी. शाह आयोग (2010) और इंटीग्रेटेड वाइल्डलाइफ मैनेजमेंट प्लान (2011) की रिपोर्टों पर सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की। 2014 में भारत सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समूह ने सारंडा की कैरिंग कैपेसिटी (Carring Capacity) पर अध्ययन किया, लेकिन उस रिपोर्ट को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
सरयू राय ने आरोप लगाया कि सेल (SAIL) जैसी कंपनियों ने सारंडा क्षेत्र में खनन के दौरान पर्यावरणीय वादों का उल्लंघन किया। उन्होंने कहा कि सेल ने कन्वेयर बेल्ट ट्रांसपोर्टेशन का वादा किया था, लेकिन अब तक एक फीट भी कार्य नहीं हुआ। उल्टे, बिना स्वीकृति लिए वन पथ को मुख्य यातायात मार्ग में तब्दील कर दिया गया, जिससे वन्यजीव और ग्रामीणों को भारी नुकसान हुआ।
राय ने कहा कि कारो और कोयना नदियां खनन प्रदूषण से “लाल पानी” में बदल चुकी हैं। उन्होंने तंज कसते हुए कहा— “कभी सवाल उठता था कि लाल सलाम ज्यादा खतरनाक है या लाल पानी — सबने माना लाल पानी ज्यादा खतरनाक है।”
उन्होंने कहा कि सरकार को सैंक्चुअरी प्रस्ताव को विवाद का विषय बनाने के बजाय सारंडा के भीतर झांकना चाहिए। वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की धारा 26A के तहत आवश्यक अनुमति मिलने पर सैंक्चुअरी सीमा बदली जा सकती है, इसलिए हाय-तौबा मचाने की जरूरत नहीं।
राय ने यह भी कहा कि झारखंड सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू, जेएसपीएल, मित्तल उद्योग, इलेक्ट्रोस्टील जैसी कंपनियों को एनजीटी से खनन स्वीकृति क्यों नहीं मिल पा रही है।
विधायक ने याद दिलाया कि 2020 में कई खनन लीज की अवधि समाप्त हो गई, पर झारखंड सरकार ने अब तक नई नीलामी प्रक्रिया (Auction Process) शुरू नहीं की, जबकि ओडिशा ने एक साल के भीतर सभी खदानों की नीलामी कर दी थी।
उन्होंने कहा कि सरकार चाहे तो खदानों में पड़ी लौह अयस्क की बिक्री कर करीब 300 करोड़ रुपये का राजस्व कमा सकती है। पर सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
अंत में सरयू राय ने कहा कि यदि राज्य सरकार वास्तव में सस्टेनेबल माइनिंग (Sustainable Mining) चाहती है, तो उसे माइनिंग प्लान फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट पर गंभीरता से विचार कर जनता के सामने वस्तुस्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।
