जमशेदपुर। देश के सबसे पुराने और प्रमुख औद्योगिक शहर जमशेदपुर का टाटानगर रेलवे स्टेशन कोल्हान का सबसे बड़ा और सबसे व्यस्त स्टेशन है, जहां रोज़ हजारों यात्री सफर करते हैं। लेकिन अब यह स्टेशन अपनी बदहाल व्यवस्थाओं से ज़्यादा, मंहगी पार्किंग और अव्यवस्था की वजह से चर्चा में है।
हाल ही में यहां पार्किंग टेंडर लागू हुआ, जिसके मुताबिक अब ड्रॉप’ ज़ोन में यदि कोई व्यक्ति किसी को लेने या छोड़ने आता है, तो उसे केवल 10 मिनट की छूट है। इसके बाद ₹12 और यदि 1 घंटे से ज्यादा रुक जाएं, तो ₹300 तक का जुर्माना।
यात्रियों का सवाल है – जब सुविधा ‘एयरपोर्ट’ जैसी नहीं तो किराया क्यों ‘एयरपोर्ट’ जैसा?
पैसा देने को हम तैयार हैं, लेकिन बदले में व्यवस्था तो मिले!”
यात्रियों का कहना है कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं अगर शुल्क लिया जाता है, बशर्ते स्टेशन पर वो बुनियादी सुविधाएं मिलें जो ऐसी व्यवस्था के तहत मिलनी चाहिए:
स्टेशन पर साफ-सुथरे, नि:शुल्क शौचालय नहीं।
व्हीलचेयर सुविधा नदारद, जबकि वरिष्ठ नागरिकों की संख्या अधिक।
लगेज ट्रॉली जैसी मूलभूत चीज़ भी नहीं दिखती।
साफ पानी, बैठने की पर्याप्त व्यवस्था और महिलाओं के लिए अलग सुविधा – कहीं नहीं।
ट्रेन आती है, लेकिन प्लेटफॉर्म नहीं मिलते!
यात्री बताते हैं कि कई बार ट्रेन स्टेशन के एकदम पास आ जाती है, लेकिन प्लेटफॉर्म पर नहीं लगती।
5 से 30 मिनट तक ट्रेन बाहर खड़ी रहती है, और जो लोग अपने परिवार को लेने आए हैं, वो ड्रॉप में फँसे रहते हैं।
ऐसे में फाइन भरना मजबूरी हो जाता है — लेकिन इसमें गलती किसकी?
बाहर टूटी सड़क, अंदर टूटी उम्मीद
स्टेशन परिसर से बाहर कदम रखते ही यात्रियों का सामना होता है:
गड्ढों से भरी सड़क
बिना ढक्कन की नालियां
बदबू, गंदगी और जलजमाव
अब सवाल यह है — स्टेशन के बाहर की सड़क और नालियों की जिम्मेदारी जिला प्रशासन की है या रेलवे की?
जनता के सवाल, जिनका कोई जवाब नहीं
1. जब चार्ज एयरपोर्ट जैसा है, तो क्या सुविधाएं भी वैसी नहीं होनी चाहिए?
2. ट्रेनों के प्लेटफॉर्म पर देर से लगने की जवाबदेही कौन लेगा?
3. बुजुर्ग, महिला, दिव्यांग यात्रियों की सुविधा की प्लानिंग कहां है?
4. स्टेशन के बाहर की नालियों और टूटी सड़कों का मरम्मत कब होगी?
रेलवे स्टेशन जनता की सेवा के लिए होता है, न कि जनता को तंग करने का एक नया तरीका। पार्किंग शुल्क से कमाई करना गलत नहीं, लेकिन उसका उद्देश्य सुविधाएं देना होना चाहिए — शोषण नहीं।
टाटानगर रेलवे स्टेशन फिलहाल सवालों के घेरे में है, और जवाबदेही तय करना अब जरूरी है।
