Jamshedpur : झारखंड में आदिवासी हक और अधिकारों को लेकर “आदिवासी सुरक्षा परिषद” के बैनर तले एक दिवसीय धरना एवं सांकेतिक भूख हड़ताल का आयोजन किया गया। इस विरोध प्रदर्शन में बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग, सामाजिक कार्यकर्ता और जनप्रतिनिधि शामिल हुए। धरना स्थल पर वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए आदिवासी अधिकारों के प्रति सरकार की उदासीनता पर सवाल उठाए और मांगें पूरी होने तक संघर्ष जारी रखने की चेतावनी दी।

धरना स्थल पर उमड़ा जनसैलाब
पूर्वी सिंहभूम जिला मुख्यालय में आयोजित इस धरने में झारखंड के विभिन्न हिस्सों से आए आदिवासी समाज के लोग जुटे। प्रदर्शनकारियों ने हाथों में तख्तियां और बैनर लेकर सरकार विरोधी नारे लगाए और आदिवासी अधिकारों की रक्षा की मांग की।
प्रमुख मांगें:
धरने में आदिवासी सुरक्षा परिषद ने चार प्रमुख मांगें उठाईं:
1️⃣ पेसा एक्ट 1996 की नियमावली बिना किसी बदलाव के लागू की जाए
झारखंड सरकार को हाईकोर्ट द्वारा दो महीने के भीतर पेसा एक्ट की नियमावली बनाने का निर्देश दिया गया था, लेकिन अब तक इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
अन्य राज्यों में लागू यह कानून झारखंड में सिर्फ कागजों तक सीमित है।
आदिवासी ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने और परंपरागत अधिकार बहाल करने की मांग उठी।
2️⃣ प्राथमिक शिक्षा में संताली (ओल चिकी) और हो (वरांग क्षिति) लिपि को शामिल किया जाए
झारखंड में संताली और हो भाषा बोलने वालों की बड़ी संख्या होने के बावजूद प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा को अब तक शामिल नहीं किया गया।
परिषद ने मांग की कि कक्षा 1 से 5 तक की पढ़ाई इन भाषाओं में कराई जाए, ताकि आदिवासी बच्चे अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ सकें।
3️⃣ अंतरजातीय विवाह करने वाली आदिवासी महिलाओं को आरक्षण, जमीन खरीदने और चुनाव लड़ने से वंचित किया जाए
परिषद ने आरोप लगाया कि कुछ बाहरी लोग आदिवासी महिलाओं से विवाह कर आरक्षण और भूमि अधिकारों का दुरुपयोग कर रहे हैं।
अन्य आरक्षित वर्गों में ऐसी व्यवस्था है कि अंतरजातीय विवाह से आरक्षण के लाभ नहीं मिलते, लेकिन आदिवासी समुदाय में ऐसी कोई रोक नहीं है, जिससे गलत फायदा उठाया जा रहा है।
परिषद ने मांग की कि ऐसी महिलाओं को सरकारी नौकरी, जमीन खरीदने और चुनाव लड़ने के अधिकार से वंचित किया जाए।
4️⃣ टाटा लीज नवीकरण की शर्तों में आदिवासी विश्वविद्यालय और स्वरोजगार की सुविधा शामिल की जाए
परिषद ने टाटा समूह को याद दिलाया कि एक दशक पहले उसने आदिवासी विश्वविद्यालय स्थापित करने का वादा किया था, लेकिन अभी तक इसे पूरा नहीं किया गया।
2026 में टाटा कंपनी की लीज नवीकरण के दौरान सरकार को इस मुद्दे को शर्त के रूप में रखना चाहिए।
साथ ही, आदिवासी बेरोजगारों को स्वरोजगार के लिए शहर में दुकानें आवंटित की जाएं।

राज्यपाल और जिला प्रशासन को सौंपा ज्ञापन
धरना प्रदर्शन के अंत में आदिवासी सुरक्षा परिषद के केंद्रीय अध्यक्ष रमेश हांसदा ने उपायुक्त के माध्यम से राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन में परिषद ने स्पष्ट किया कि यदि सरकार ने जल्द ही इन मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।
भूख हड़ताल पर बैठे प्रदर्शनकारियों को पिलाया गया जूस
धरने के दौरान कई प्रदर्शनकारी सांकेतिक भूख हड़ताल पर बैठे थे। अंत में, भाजपा जिला अध्यक्ष सुधांशु ओझा और जिला उपाध्यक्ष बबुआ सिंह ने प्रदर्शनकारियों को जूस पिलाकर हड़ताल समाप्त करने का आग्रह किया। हालांकि, आदिवासी नेताओं ने यह साफ कर दिया कि संघर्ष तब तक जारी रहेगा, जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।

क्या बोले आंदोलनकारी?
परिषद के अध्यक्ष रमेश हांसदा ने कहा,
“आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकारों से लगातार वंचित किया जा रहा है। झारखंड सरकार की उदासीनता के कारण आज भी पेसा एक्ट पूरी तरह लागू नहीं हुआ है। अगर सरकार ने हमारी मांगों को नजरअंदाज किया, तो हम और बड़ा आंदोलन करेंगे।”
धरने में शामिल एक युवा कार्यकर्ता ने कहा,
“हमारे बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा का अधिकार मिलना चाहिए। अगर झारखंड आदिवासियों के लिए बना था, तो हमारी पहचान और संस्कृति को खत्म करने की साजिश क्यों हो रही है?”

संघर्ष जारी रहेगा!
धरने में शामिल आदिवासी समाज के लोगों ने नारे लगाए –
“हमारे अधिकार, हमारा हक!”
“जब तक मांगें पूरी नहीं होंगी, आंदोलन जारी रहेगा!”
यह आंदोलन आदिवासी समाज के हक और अस्तित्व की लड़ाई को लेकर हो रहा है। आदिवासी सुरक्षा परिषद ने यह साफ कर दिया है कि अगर सरकार ने जल्द से जल्द इन मांगों पर ठोस कदम नहीं उठाए, तो वे आगे और उग्र आंदोलन करेंगे।