Chandil:नारायण प्राइवेट आईटीआई, लुपुंगडीह चांडिल में आज संत रविदास की 645वीं जयंती श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई गई। इस शुभ अवसर पर संस्थान के संस्थापक डॉ. जटाशंकर पांडे ने संत रविदास के जीवन और शिक्षाओं पर प्रकाश डाला।
उन्होंने बताया कि संत रविदास का जन्म काशी के डाफी क्षेत्र में हुआ था, जो BHU के पीछे स्थित है। यहां उनके सम्मान में सफेद संगमरमर से निर्मित एक भव्य मंदिर बनाया गया है, जिसका स्वर्णिम गुम्बद इसकी शोभा बढ़ाता है। इसे काशी का दूसरा गोल्डन टेम्पल भी कहा जाता है।
संत रविदास की अमर वाणी और उनका भक्ति आंदोलन में योगदान
संत रविदास भक्ति आंदोलन के महान संतों में से एक थे। उनकी शिक्षाएं समानता, मानवता और आध्यात्मिक जागरूकता पर आधारित थीं। उनकी रचनाओं को गुरु अर्जन देव जी ने सिखों के पवित्र ग्रंथ श्री गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया। इसमें 41 पद संत रविदास के नाम से दर्ज हैं, जो उनकी आध्यात्मिक दृष्टि और प्रेम से भरी हुई हैं।
दिल्ली में तुगलकाबाद के ऐतिहासिक मंदिर की कहानी
इतिहास में संत रविदास को सम्मान देते हुए दिल्ली के सुल्तान सिकंदर लोदी ने उन्हें तुगलकाबाद में 12 बीघा जमीन दान की थी। इस स्थान पर 1954 में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
पंजाब से वाराणसी तक विशाल श्रद्धालुओं का आगमन
हर साल माघ पूर्णिमा को संत रविदास जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर 16 फरवरी को पंजाब से हजारों श्रद्धालु वाराणसी पहुंचते हैं और संत रविदास मंदिर में मत्था टेकते हैं।
समारोह में शामिल गणमान्य व्यक्ति
इस पावन अवसर पर प्रमुख रूप से एडवोकेट निखिल कुमार, प्रिंसिपल जयदीप पांडे, शांति राम महतो, प्रकाश कुमार महतो, शशि प्रकाश महतो, गौरव महतो और पवन कुमार महतो उपस्थित रहे।